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शक्ति एक नाम अनेक

sabke kaam ki baate
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ये सत्य हे की सारा संसार उसी इक शक्ति द्वारा बनाया हुआ हे जिसे हम विभिन्न नामो से पुकारते हे परन्तु वो एक ही हे क्योकि आदि सृस्टि में ही उसने इस सृस्टि का विज्ञानं अबसे दो अरब साल पहले ही की सुरुआत के साथ ही उन आदि रिसियो को दे दिया था जो सबसे पवित्रत आत्माए थी ये सत्य हे की कालांतर में कालचक्र कुछ ऐसा घुमा की आज अनको मत मतान्तर पैदा हो गए हे पर सत्य ज्ञान तो वोही होगा न जो आदि सृस्ती में स्रास्तिकर्ता ने मानवो को दिया हे न की वो जो आज २ या ४ हजार साल से उत्पन्न हुए नए नए मत मतान्तर / देखए जब आज के तिब्बत में आदि सृस्ती की यानि मानवी स्रस्ती की सुरुआत हुई तो यही पर सर्वप्रथम हर बार की तरह आदि पूर्वजो का जनम हुआ अब कोई पूछे की आदि सृस्ती में मानव किस अवस्था में उत्पन्न हुआ तो जबाब हे युवावस्था में क्योकि अगर शिशु अवस्था में होता तो उसे पालने को फिर किसी युवा की आवसय्कता होती इसलिए उस महाशक्ति ने आदि सृस्ती में मानवो को युवा अवस्था में उत्पन्न किया / अब बहुत से लोग ये संका कर सकते हे की वो महासक्ति सरीर धारी तो हे नहीं फिर आदि मानवो को उसने केसे निर्माण किया / बहुत छोटी सी बात हे जो बिना देह के इस अनंता ब्रहमांड को बना सकता हे उसके लिए ये कोनसी दुर्लभ बात हे इस अनंता ब्रह्माण्ड को ही देखिये इसमें हमरे सोर मंडल में ही अनको ग्रह उपग्रह और उनको प्रकाशित करने वाला सूर्य फिर ये सब जितना स्थान घेरे हुए हे उससे करोरो गुना खाली हे. ये तो केवल हमारे सोर मंडल की बात हे ऐसे लाखो सोर मंडल अपनी आकाशगंगा में हे फिर इतना ही नहीं ऐसे ऐसी अनंता आकाशगंगाए इस ब्रह्माण्ड में हे . न इनका कोई छोर हे न ओर हे फिर इने बनाने वाली महाशक्ति की सक्तियो का क्या ठिकाना जिसे इस तुच्छ मानव ने केवल इक खेल बना कर रख दिया हे उसे वो मंदिर मस्जिदों में केद कर रखना चाहता हे क्या गजब बात हे समुंदर को कटोरे में बंद कर रखना चाहता हे क्या समुंदर कटोरे में आ सकता हे नहीं न इसी तरह उस महासक्ती को मत मतान्तरो की जंजीरों में नहीं बाधा जा सकता क्योकि सर्वस्व तो इस अनंता ब्रहमांड का उसी में समाहित हे और वो इस दृश्य जगत से भी पर”त्रिपदाशाया अमरता “हे अर्तार्थ उसके एक अंश मात्र से ही ये सारा जगत बन जाता हे उसे अपने तीन अंशो से कभी कार्य नहीं करना पड़ता इतना बड़ा हे इस जगत का प्रकासक जो जगत के अंदर व्यापक हे और जगत के बहार भी व्याप्य हे उसका कार्य हे मानवो को कर्म करने में स्वतंत्र रखना और फल देने में अपने बस में रखना . इसमें वो किसी को कोई छुट नहीं देता ‘अवश्यमेवभोक्ततव्यमकृत कर्म शुभ असुभं ” यानि किये हुए कर्म का फल मानव को भुगताना ही उसका कार्य हे / वेदों में उसे अनेको नामो से पुकारा गया हे जो उसके कार्यो के अनुसार हे जेसे “विष्णु” जो विश्व में व्यापक हे “ब्रह्मा” जो सबसे बड़ा हे ” इसी प्रकार उसके अनेको नाम हे जो गुणवाची हे जिसकी विस्त्रत चर्चा इक अलग लेख में करगे पर ये भी पूर्ण सत्य हे अनेको नाम होने पर भी हमे संका नहीं करनी चाहिए जेसे गुण के अनुसार हम एक मनुष्य को अनेको नाम से पुकारते हे जेसे संगीत में निपुण को संगीतकार ,कला में निपुण को कलाकार, चित्र में निपुण को चित्रकार, इसे प्रकार इसमें क्या आश्चर्य हे की जो परमात्मा अनंत गुणों का भंडार हे अगर उसे उसके गुणों अनुसार विभिन्न नामो से पुकारा जाये .अनेको गुण होने पर भी वो एक ही हे . इसलिए उस परम प्रभु के अनेको नाम होने पर भी मित्रो भरम में मत पड़ना इस विषय पर इक लेख पढ़ईगा “प्रभु एक नाम अनेक आओ जाने उसके उन नामो के वैदिक अर्थ “

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