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क्या प्राण प्रतिस्था जेसी कोई चीज होती हे तो जब सोमनाथ के मंदिर को गजनी ने लुटा था क्यों उसे कोई शक्ति महसूस नहीं हुई वो वहा के पुजारियों को भी बंदी बना कर ले गया था तब क्यों नहीं उस प्राण प्रतिस्तिः मूर्ति ने उनकी रक्षा नहीं की जो स्वयं पर बठी एक मक्खी भी नहीं उढा सकता भला दुसरे की रक्षा क्या करेगा अगर वास्तव में मंत्रो से प्राण प्रतिस्था होती हे तो युद्ध में मारे गए सेनिको के सरीर में प्राण प्रतिस्था क्यों नहीं करते ताकि इस देश और उन वीर सेनिको के परिवार वालो पर कितना उपकार होगा मित्र इसलिए वोही बात कहे जो सत्य हो और हमारी संस्क्रृति जिसे वैदिक संस्कृति या वैदिक धरम भी कहते हे उन वेदों में प्राण प्रतिस्था का कोई मंत्र नहीं हे मंत्र तो दूर की बात हे वेदों में तो कोई मूर्ति वाद ही नहीं हे तो प्राण प्रतिस्था कहा से होगी वैदिक काल से लेकर महाभारत काल तक हमारे इस भारतवर्ष में मूर्ति पूजा का कोई चलन नहीं था पंडित नेहरु ने भी अपनी पुस्तक ‘” डिसकवरी ऑफ़ इंडिया” में लिखा हे बुद्ध से बुत सब्द बना अर्थार्थ मूर्ति वास्तव में बुद्दा के वाद ही मूर्ति पूजा का चलन भारतवर्ष में सुरु हुआ था इससे पहले ग्रंथो को उठाकर देखिये उनमे केवल यज्ञ आदि का ही वर्णन आता हे क्योकि वैदिक धरम में वैदिक संस्कृति में केवल यज्ञ को ही प्रमुख धार्मिक करम माना गया हे क्योकि यज्ञ के भोतिक और आदिभोतिक दो लाभ होते हे प्रथम भोतिक लाभ –यज्ञ में पड़ने वाली ओषधियो वनस्पतियों से वातावरण सुद्ध होता हे जिससे बीमारिया नहीं होती तथा वर्षा भी उचित समय पर होती हे तथा सर्व भवन्तु सुखिन की वैदिक भावना का प्रत्यक्ष होता हे क्योकि यज्ञ में पड़ी आहुतियो से फेली सुंगध से मित्र सत्रु सबका उपकार होता हे इससे अच्छी भावना क्या हो सकती हे दूसरा आदिभोतिक लाभ वैदिक मंत्रो के निरंतर अध्ययन से आत्मा का विकास होता हे जो हर जीवन का प्रमुख कर्त्तव्य हे ये प्राण प्रतिस्था का ढोंग हमारी वैदिक संस्कृति या वैदिक धरम के पूर्णतया विपरीत हे और जो लोग ये तर्क देते हे की मंदिर में जाकर हमें शांति क्यों महसूस होती हे तो मेरी भोले भाई इसमें मंदिर का नहीं तुम्हारी भावना का सवाल हे अगर मंदिर में ही सन्ति होती तो जिन आक्रमण करियो ने लाखो मंदिर लूटे उन्हें उन मंदिर में आकर कोई सन्ति महसूस क्यों नहीं हुई ताकि उनका स्वाभाव बदल जाता और वे उन को तोड़ फोड़ कर उनका विनाश नहीं करते क्यों नहीं उनकी भावना बदल गयी
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