- 40 Posts
- 26 Comments
श्रीमान जी मानव वही हे जो सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने को प्रत्येक पल तेयार रहे इसमें किसी के द्वारा की गयी तुलना से अपना आपा खोकर उससे लड़ने मरने को तेयार होना मानव की मानवता नहीं हे क्योकि मानव सब्द का अर्थ ही हे मा+नव जो नवीन हो जो नित्य निकलते सूर्य की तरह नवीन प्रकाश दे वोही तो मानव हे इस समस्त पृथ्वी के हम सब प्राणी इक ही महासक्ति द्वारा बनाये गए हे तभी तो इस सारे संसार में एक ही व्यस्था हे क्योकि एक ही व्यस्थापक हे एक ही सूर्य सबको प्रकाश देता हे एक ही वायु में सब सांस लेते हे एक ही जल से सबकी प्यास मिटती हे इक ही अन्न से सबकी भूख मिटती हे इसलिए जो इस संसार में दृष्टी गो चर हो रहा हे उसे आँखों से देखो जब सारे संसार में कोई भेदभाव नहीं तो तुम क्यों भेद समझते हो हम सब मनुष्यों का एक ही धर्मं हे मानवता और जिसमे मानवता नहीं वो मनुष्य ही नहीं पशु हे सत्य को कहना जितना कठिन हे उतने ही सत्य को सुनने वाले मिलने कठिन हे क्योकि आज सब भेड़ की तरह हांके जाने को ही धर्मं समझ बेठे हे चाहे कितने बड़े वैज्ञानिक हो प्रोफेसर हो डाक्टर हो पर धर्म के मामला आने पर सब आँखे बन्द क़र लेते हे मानों धर्मं कोई होवा हे अरे मेरे भाई धर्मं तो परमात्मा द्वारा रचे प्रकर्ति के तत्वों का अपने अपने नियमो में चलने का नाम हे जेसे अग्नी का धर्म उष्णता हे जल का धरम शीतलता हे इसी तरह प्रकर्ति के सभी तत्व परमात्मा के बनाये नियमो में चलते हे और अपने मूल गुणों को कभी नहीं छोड़ते ये ही धर्मं हे और ये भी सत्य हे सारे संसार में एक ही धरम हे जो धरम हे बाकि तो सब मत हे अब आप कहंगे धरम और मत में अंतर क्या हे मेरे भाई देखए धरम वो हे जिसके नियमो पर सारा आत्मा संसार या कहे ये ब्रहमांड चल रहा हे जिन नियमो को उस महासक्ति ने बनाया हे उन गुण धर्मो को जड़ चेतन कोई नहीं तोड़ सकता और मत वो हे जिन्हें विभिना विचारको ने समय समय पर व्यक्त किया पर वो केवल मत हो सकते हे धरम नहीं क्योकि मत बदलते रहते हे पर धरम नहीं बदलता जेसे अग्नि अपना धरम नहीं छोड़ सकती ये ही तो धरम हे जिसे किसी व्यक्ति विशेष ने चलाया वो मत ही कहलायेगा ,और धरम तो तब से विद्यमान हे जबसे ये जगत बना हे इसे किसे व्यक्ति विशेष के नाम से नहीं जाना जाता क्योकि क्योकि ये ईश्वरीय नियमो का संग्रह हे यानि जो कुछ भी संसार में नियम हे सब परमात्मा के हे समय से सूर्य का दिन रात का आना ऋतुओ का बदलना सब जीवधारियो के हित के लिए हे इनमे कोई भेद नहीं हे क्योकि सारा जगत ही परमात्मा का बनाया हुआ हे तो किसी के लिए भेद हो हे केसे सकता हे और ये भेद तो मानवों के बनाये मतों में हे क्योकि भेद मानवों की बनाये नियमो में ही हो सकता हे परमात्मा के लिए तो सारा संसार पुत्रवत हे यहाँ आपको एक विशेष द्रस्टी दे रहा हु जहा आप किसी मत में इन्सान का इन्सान के प्रति भेद देखे समझ जाये ये उस इन्सान का बनाया मत हे इसका ईशवर से कुछ लेना देना नहीं हे ये उस विचारक का अपना मत हे क्योकि प्रभु के लिए तो समस्त प्राणधारी बराबर हे लेकिन बाद में बने मत मतांतर ऐसा नहीं मानते वो इन्सान इन्सान में भेद करते हे इससे भी यही साबित होता हे ये इन्सान के ही बनाये मत हे ,इसे तरह बहुत थोड़े थोड़े समय से सेकड़ो मत मतान्टर चल निकले हे लेकिन आज कोई भी तटस्थ होकर इनका खोज करने को तेयार नहीं हे जो इन मतों के मानने वाले हे उनसे सत्य कहो तो लड़ने को आयेंगे एक और विचार करने योग्य बात हे ये जितने भी मत चले हे सब महाभारत काल के बाद चले हे इसका एक ही कारण नज़र आता हे आज से ५००० वर्ष पूर्व महाभारत काल तक संपूर्ण पृथ्वी पर भारत का ही एक छत्र साम्राज्य था सभी पृथ्वी के राजा भारतीय वैदिक चक्रवर्ती साम्राज्य के अधीन धरम पूर्वक राज्य करते थे और जब कोई राजा वैदिक नियमो को भंग करता या दुष्टता करता तो भारत की केंद्रीय सत्ता उसे उसका ढंड देकर वहा पुनः धर्मं का राज्य स्थापित करती थी उस समय की चक्रवर्ती वैदिक साम्राज्य प्रणाली आज की डिक्टेटर शिप वाली व्यवस्था नहीं थी इसमें हर राज्य देश प्रजा हित में पूर्ण स्वतंत्र था परन्तु उच्छास्रंखलता करने पर केंद्रीय सत्ता द्वारा दण्डित होता था जेसे लंका जो भारत के चक्रवर्ती साम्राज्य के अधीन ही था जब वहा राजा रावन ने दुष्टता पूर्वक सामान्य जानो को सताना सुरु कर दिया और ऋषि जो नयी नयी खोजो से समाज का हित करते थे उनकी प्रयोगशालाओ को नस्ट करना सुरु कर दिया तो अयोध्या के राजकुमार श्री राम ने उसे उसकी दुष्टता का ढंड देकर वहा पुन वैदिक साम्राज्य की स्थापना की I ये ही वैदिक सार्वभौमिक सत्ता और आज के उपनिवेश वाद में अंतर हे
Read Comments