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अंडा मनुष्य के पाचन तंत्र के लिए अपाच्य हे इसका ९० प्रतिसत हिस्सा अपाच्य रूप में ही शरीर के बहार निकल जाता हे फिर मनुष्य को परमात्मा ने जो सूंघने की सकती दी हे इसलिए की उचित अनुचित को देखकर मनुष्य भोजन करे अंडे आदि से कितनी दुर्घंदा निक्कालती ह क्या वो मनुष्य का भोजन हो सकता हे जिसे रसना ही स्वीकार न करे क्या वो भोजन करना उचित हे अंडा माष आदि मनुष्य का भोजन ही नहीं हे देखिये अंडा हे क्या इक प्राणी का बीज इक जीवित प्राणी का जिससे जनम होता हे और उसे ही जो खा जाये क्या वो मनुष्य हो सकता हे मनुष्य वो हे जो मनन करे न कि केवल जीभ के स्वाद के लिए अंड बंड खाता जाये मेरे भाई जरा विचार करो जो भोजन खुद बदबू दार हो क्या बो खाना चाहिए मेरे प्यारे भाई इस सृस्टि में भोजन के लिया इक से इक फल मेवे अनाज किसमिस आदि लाखो प्यारे पदारथ हे सुंदर से सुंदर मसाले हे फिर क्यों इस त्याज्य और प्रकर्ति विरुद्ध पदार्थ अंडे के पीछे मानव पड़ा हे उसकी बुद्धि कहा चली गयी हे जो ये नही सोच पा रहा हे की भोजन वो होना चाहिए जो प्रकर्ति के अनुकूल हो जो हर प्राणी के अनुसार अलग अलग हे मानव प्रकर्ति से ही साकाहारी हे ये पुरणतया सिद्ध बात हे
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