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सच्चा धरम क्या हे

sabke kaam ki baate
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मानव वही हे जो सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने को प्रत्येक पल तेयार रहे इसमें किसी के द्वारा की गयी तुलना से अपना आपा खोकर उससे लड़ने मरने को तेयार होना मानव की मानवता नहीं हे क्योकि मानव सबद का अर्थ ही हे मा+नव जो नविन हो जो नित्य निकलते सूर्य की तरह नविन प्रकाश दे वोही तो मानव हे इस समस्त पृथ्वी के हम सब प्राणी इक ही महासक्ति द्वारा बनाये गए हे तभी तो इस सारे संसार में एक ही व्यस्था हे क्योकि एक व्यस्थापक हे एक ही सूर्य सबको प्रकाश देता हे एक ही वायु में सब सांस लेते हे एक ही जल सबकी प्याश बुझती हे इक ही अन्न से सबकी भूख मिटती हे इसलिए जो इस संसार में दृष्टी गो चर हो रहा हे उसे आँखों से देखो जब सारे संसार में कोई भेदभाव नहीं तो तुम क्यों भेद समझते हो हम सब मनुष्यों का एक ही धर्मं हे मानवता और जिसमे मानवता नहीं वो मनुष्य ही नहीं पशु हे सत्य को कहना जितना कठिन हे उतने ही सत्य को सुनने वाले मिलने कठिन हे क्योकि आज सब भेड़ की तरह हांके जाने को ही धर्मं समझ बेठे हे चाहे कितने बड़े वैज्ञानिक हो प्रोफेसर हो डोक्टर हो पर धर्म के मामला आने पर सब आँखे बन्द क़र लेते हे मानों धर्मं कोई होवा हे अरे मेरे भाई धर्मं तो इश्वर द्वारा रचे प्रकर्ति के तत्वों का अपने अपने नियमो में चलने का नाम हे जेसे अग्नी का धर्म उष्णता हे जल का धरम सीतलता हे इसी तरह प्रकर्ति के सभी तत्त्व परमात्मा के बनाये नियमो में चलते हे और अपने मूल गुणों को कभी नहीं छोड़ते ये ही धर्मं हे और ये भी सत्य हे सारे संसार में एक ही धरम हे जो धरम हे बाकि तो सब मत मतान्टर हे अब आप कहंगे धरम और मत में अंतर क्या हे मेरे भाई देखए धरम वो हे जिसके नियमो पर सारा संसार या कहे ये ब्रहमांड चल रहा हे जिन नियमो को उस महासक्ति ने बनाया हे उन गुण धर्मो को जड़ चेतन कोई नहीं तोड़ सकता और मत वो हे जिन्हें विभिना विचारको ने समय समय पर व्यक्त किया पर वो केवल मत हो सकते हे धरम नहीं क्योकि मत बदलते रहते हे पर धरम नहीं बदलता जेसे अग्नि अपना धरम उस्नता कभी नहीं छोड़ सकती ये ही तो धरम हे जिसे किसी व्यक्ति विशेष ने चलाया वो मत ही कहलायेगा जेसे इसा के नाम पर चला तो ईसाई मत ,और धरम तो तब से विद्यमान हे जबसे ये जगत बना हे इसे किसे व्यक्ति विशेष के नाम से नहीं जाना जाता क्योकि क्योकि ये ISVARIYA नियमो का संग्रह हे यानि जो कुछ भी संसार में नियम हे सब इस्वरीय हे समय से सूर्य का दिन रात का आना ऋतुओ का बदलना सब जीवधारियो के हित के लिए हे इनमे कोई भेद नहीं हे क्योकि सारा जगत ही परमात्मा का बनाया हुआ हे तो किसी के लिए भेद हो हे केसे सकता हे और ये भेद तो मानवों के बनाये मतों में हे क्योकि भेद मानवों की बनाये नियमो में ही हो सकता हे परमात्मा के लिए तो सारा संसार पुत्रवत हे यहाँ आपको एक विशेष द्रस्ती दे रहा हु जहा आप किसी मत में इन्सान का इन्सान के प्रति भेद देखे समझ जाये ये उस इन्सान का बनाया मत हे इसका इश्वर से कुछ लेना देना नहीं हे ये उस विचारक का अपना मत हे क्योकि प्रभु के लिए तो समस्त प्राणधारी बराबर हे लेकिन बाद में बने मत मतान्टर ऐसा नहीं मानते वो इन्सान इन्सान में भेद करते हे इससे भी यही साबित होता हे ये इन्सान के ही बनाये मत हे जेसे ईसा के बाद ईसाई मत चला ,यानि इसको चले हुए केवल २०1० साल ही हुए हे और मोहमद साहेब के बाद मुस्लिम मत चला जिसे चले हुए ,१४३१ साल ही हुए हे ,इसे तरह बहुत थोड़े थोड़े समय से सेकड़ो मत मतान्टर चल निकले हे लेकिन आज कोई भी तटस्थ होकर इनका अन्वेसेन करने को तेयार नहीं हे जो इन मतों के मानने वाले हे उनसे सत्य कहो तो लड़ने को आयेंगे एक और विचार करने योग्य बात हे ये जितने भी मत चले हे सब महाभारत काल के बाद चले हे इसका एक ही कारण नज़र आता हे आज से ५००० वर्ष पूर्व महाभारत काल तक संपूर्ण पृथ्वी पर भारत का ही एक छत्र साम्राज्य था सभी पृथ्वी के राजा भारतीय वैदिक चक्रवर्ती साम्राज्य के अधीन धरम पूर्वक राज्य करते थे और जब कोई राजा वैदिक नियमो को भंग करता या दुष्टता करता तो भारत की कंद्रीय सत्ता उसे उसका ढंड देकर वहा पुनहा धर्मं का राज्य स्थापित करती थी उस समय की चक्रवर्ती वैदिक साम्राज्य प्रणाली आज की डिक्टेटर शिप वाली व्यवस्था नहीं थी इसमें हेर राज्य देश प्रजा हित में पूर्ण स्वतंत्र था परन्तु उच्छास्रंखलता करने पर केंद्रीय सत्ता द्वारा दण्डित होता था जेसे लंका जो भारत के चक्रवर्ती साम्राज्य के अधीन ही था जब वहा राजा रावन ने दुष्टता पूर्वक सामान्य जानो को सताना सुरु कर दिया और रिसी जो नयी नयी खोजो से समाज का हित करते थे उनके प्र्योग्सलायो को नस्ट करना सुरु कर दिया तो अयोध्या के राजकुमार श्री राम ने उसे उसक I दुष्टता का ढंड देकर वहा पुनहा वैदिक साम्राज्य की स्थापना की वैदिक सार्वभोमिक धरम वादी विभीसन को वहा राजा बनाया आज कल के उपनिवेश वादियों की तरह वहा कब्ज़ा नहीं किया ये ही तो वैदिक संस्कृति की महानता हे जिसमे हर मानव को उसके गुणों से पुरस्कार और अवगुणों से ढंड का प्रावधान रहा हे उस काल से महाभारत काल तक सम्पुरण पृथ्वी पर एक ही धरम वैदिक धरम एक ही संस्कृति वैदिक संस्कृति थी महाभारत के महायुद्ध में जो महाविनाश हुआ बड़े बड़े शूरवीर .महावीर .विद्वान उस युदय की महाज्वाला में भसम हो गए और महँ वैदिक भारत की केंद्रीय सत्ता का ऐसा हास हुआ जो भारत के चक्र वर्ती सम्राट सम्पुरण पृथ्वी पर एक छात्र राज्य करते थे वो भारत खुद खंड खंड सक्तीयो में बट गया और केंदिर्य सत्ता के कमजोर होने से सम्पुरण पृथ्वी पर तरह के मत मतनतेर उठ खड़े हुए इसका सबसे बड़ा ज्वलंत प्रमाण हे आज संसार में जितने भी मत चल रहे हे सबकी आयु या सबको बने हुए २ या ३ हजार वर्ष से ज्यादा नहीं हुए हे ये स्पस्ट प्रमाण हे की ये सारे मत महाभारत काल के बाद में ही बने हे जिनका धर्म के वास्तविक रूप से कोई लेना देना नहीं हे इनका निर्माण स्वार्थियो ने केवल अपने स्वार्थ पूर्ति और अपने झुंटे अहम् की पूर्ति के लिए किया हे इसलिए जब आप इन मतों को देखते हे तो इनमे इतनी घर्णा भरी हुई हे एक दुसरे मत वादियों के प्रति की साधारण आदमी ये सोचने लगता हे की क्या ये धरम हे पर वास्तव में इन मतों का धरम के वास्तविक रूप से कुछ लेना देना नहीं हे

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