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में कौन हु मानव का एक यक्ष प्रस्न

sabke kaam ki baate
sabke kaam ki baate
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१. प्रश्न –नाम क्या हे जेसे में उक्त नाम ,राम श्याम या रीना टीना बबलू डब्लू इत्यादि , इसे ही लोग स्वयं को माने बेठे हे | के ये ही हु में परन्तु वे ये क्यों नहीं ेस्मरण करते की ये नाम इत्यादि तो जनम लेने के बाद पड़े हे २.उतर —देह व् मेरा [आत्मा] का जो सयोग हे वो ही नाम हे | जेसे ह+ओ=पानी= हाइड्रोजन और ऑक्सीजन और इन्हे अलग कर दीजिये पानी नहीं रहेगा | इसलिए जो चेतन्य आत्मा हे वो ही उत्तरदायी हे
जेसे गाड़ी से एक्सीडेंट करने पर गाड़ी को सजा नहीं मिलती परतु उसके ड्राईवर को सजा मिलती हे | ३.इस देह की क्रिया का कोन जिम्मेवार हे | उत्तर–इस सरीर रूपी रथ को चलने वाला रथी वो चेतन्य आत्मा
जैसे —एक सेवक को उसकर मालिक ने बाजार से सामान लाने को घोड़ो की बग्गी दी और कहा की एक बात का ध्यान रखना की इनमे एक बुरी आदत हे जिस रस्ते से हम सहर जाते हे वहा एक दोराहा पड़ता हे एक रास्ता तो सहर को जाता हे दूसरा वहा को जहा इसके पूर्व मालिक रहते हे वहा पहुचने पर अगर ध्यान न रखा जाये तो तो ये वहा को चल देते हे जो पूर्व मालिक का रास्ता हे वैसे मेने भी उस रस्ते पर गड़े खुदवा दिए हे ताकि घोड़े वहा न जाये पर तू सावधान रहना | अब नोकर चल दिया सहर की तरफ पर नोकर था भंग का सोकिन सो उसने भंग का अंटा लगा लिया अब जब दोराहा आया तो पूर्व आदत के अनुसार घोड़े चल दिए गलत रस्ते पर यानि उसी गढ्डे वाले रस्ते पर पर नोकर था भंग की टुन्न में जब गढ्डे में झटके लगे तो वो उछलता और गाडी में आ पड़ता और मन में सोचता अरे वाह ये घोड़े तो उड़ने लगे हे कभी उड़ते हे कभी जमी पर आ जाते हेकुछ देर बाद ऐसा गढ्डा आया जिसमे वो नोकर घोड़े का संतुलन नहीं बना पाया और रास्ता था पहाड़ी तो वो जा पड़ा पहाड़ी से नीचे और नसे में ही उसका बोलो राम हो गया घोड़े तो चले गए अपने मालिक के पास | अब आपको ये कहानी सुनकर उस नोकर की बुद्धि पर तरस आता होगा परतु क्या हम सब भी इसी भंग के नसे खोये हुए नहीं हे | ये भंग का नासा क्या हे “अहंकार” ये में हूँ में इसका पिता, में इसका पति , उसका चाचा, उसका ,उसका मामा, उसका दादा, या में डोक्टर वकील इन्जिनियेर नेता इत्यादि |
\ ४.ये गढ्डे क्या हे –सरीर पर आक्रमण करते रोग जो बार बार चेताते हे की सावधान तू इस देह का मालिक नहीं हे देख ह म बिना तेरी इच्छा के इस सरीर में घुस आये हे ५.अंत में मोत उसे दबोच लेती हे इसलिए हर बक्त जो इस अटल सत्य को अपने सामने रखता हे वो कभी किसी झूटे नसे में नहीं रहता उसे ही अपना सच्चा ज्ञान रहता हे “खुद को जानिए सारे संसार को स्वयेम ही जान लेंगे ” देह और चेतन्य आत्मा के भेद को जो समझ लेता हे उसके लिए संसार में कोई भेद नहीं रहता क्योंकि वो ही सच्चे स्वरुप में संसार और उसके कर्तव्य को जान सकता ही उसके लिया सारा जगत एक समान हो जाता हे उसके लिए अपने पराये का भेद नहीं रहता सब उसे अपने ही दीखते हे

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